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Wednesday, April 19, 2017

गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर

 गोरखनाथ मन्दिर का इतिहास
गोरखनाथ मंदिर गोरखनाथ का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है और यह शहर के बीचों बीच स्थित है। यह मंदिर उस जगह बनाया गया है जहाँ गुरु गोरखनाथ साधना किया करते थे। यह मंदिर 52 एकड़ जमीन पर बनाया गया है। यह मंदिर इस क्षेत्र में सबसे सुंदर और विशिष्ट मंदिरों में से एक है। प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी के दिन यहां मकर सक्रांति मेले का आयोजन किया जाता है। लाखों की संख्या में भक्त और पर्यटक विशेष रूप से मंदिर में होने वाले मेले में सम्मिलित होते हैं।
गोरखनाथ नाथ (गोरखनाथ मठ) नाथ परंपरा में नाथ मठ समूह का एक मंदिर है. इसका नाम गोरखनाथ मध्ययुगीन संत गोरखनाथ (सी. 11 वीं सदी ) से निकला है जो एक प्रसिद्ध योगी थे जो भारत भर में व्यापक रूप से यात्रा करते थे और नाथ सम्प्रदाय के कैनन के हिस्से के रूप में ग्रंथों के लेखक भी थे ।
नाथ परंपरा गुरु मत्स्येंद्रनाथ द्वारा स्थापित की गयी थी. यह मठ एक बड़े परिसर के भीतर गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में स्थित है. 'गोरखनाथ' मंदिर उसी स्थान पर स्थित है जहां वह तपस्या करते थे और उनको श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए यह मन्दिर की स्थापना की गयी थी.
गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर गुरु गोरखनाथ के नाम पर रखा गया जिन्होंने अपनी तपस्या के सबक मत्स्येंद्रनाथ से सीखे थे, जो नाथ सम्प्रदाय (मठ का समूह) के संस्थापक थे. अपने शिष्य गोरखनाथ के साथ मिलकर, गुरु मत्स्येंद्रनाथ ने हठ योग स्कूलों की स्थापना की जो योग अभ्यास के लिये बहुत अच्छे स्कूलों में से माना जाता था.
क़रीब 52 एकड़ के सुविस्तृत क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। वर्तमान में गोरक्षनाथ मंदिर की भव्यता और पवित्र रमणीयता अत्यन्त कीमती आध्यात्मिक सम्पत्ति है। इसके भव्य व गौरवपूर्ण निर्माण का श्रेय महिमाशाली व भारतीय संस्कृति के कर्णधार योगिराज महंत दिग्विजयनाथ जी व उनके सुयोग्य शिष्य वर्तमान में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज को है, जिनके श्रद्धास्पद प्रयास से भारतीय वास्तुकला के क्षेत्र में मौलिक इस मंदिर का निर्माण हुआ।

शैक्षिक व सामाजिक महत्त्व

मंदिर प्रांगण में ही गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ है। इसमें विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क आवास, भोजन व अध्ययन की उत्तम व्यवस्था है। गोरखनाथ मंदिर की ओर से एक आयुर्वेद महाविद्यालय व धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की गयी है। गोरक्षनाथ मंदिर के ही तत्वावधान में 'महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्' की स्थापना की गयी है। परिषद् की ओर से बालकों का छात्रावास प्रताप आश्रम, महाराणा प्रताप, मीराबाई महिला छात्रावास, महाराणा प्रताप इण्टर कालेज, महंत दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महाराणा प्रताप शिशु शिक्षा विहार आदि दो दर्जन से अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण और प्राविधिक संस्थाएं गोरखपुर नगर, जनपद और महराजगंज जनपद में स्थापित हैं।

मंदिर के महंत

गुरु गोरखनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि से विभूषित किया जाता है। इस मंदिर के प्रथम महंत श्री वरद्नाथ जी महाराज कहे जाते हैं, जो गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य थे। तत्पश्चात परमेश्वर नाथ एवं गोरखनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वालों में प्रमुख बुद्ध नाथ जी (1708-1723 ई), बाबा रामचंद्र नाथ जी, महंत पियार नाथ जी, बाबा बालक नाथ जी, योगी मनसा नाथ जी, संतोष नाथ जी महाराज, मेहर नाथ जी महाराज, दिलावर नाथ जी, बाबा सुन्दर नाथ जी, सिद्ध पुरुष योगिराज गंभीर नाथ जी, बाबा ब्रह्म नाथ जी महाराज, ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजय नाथ जी महाराज क्रमानुसार वर्तमान समय में महंत श्री अवैद्यनाथ जी महाराज गोरक्ष पीठाधीश्वर के पद पर अधिष्ठित हैं।

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में  नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित  भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जै सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त  परमहंस योगानंद का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्ध के घर, इमामबाड़ा, 18 सदी की दरगाह और हिंदू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस
20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वातंत्र्य आन्दोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे  का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में "बंगाल- नागपूर-रेलवे" के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्यो

DEORIA, UTTAR PRADESH


 DEORIA DISTRICT, UTTAR PRADESH
 

Current area of this district was a part of 'Koshal rajya'- a prime centre of ancient'arya culture' surrounded by Himalaya in north, Shyandika river in south, 'Panchal rajya' in west & Maghadh rajya in (Bihar) east. Besides many fictions related with this area, astro-historical fossils ('murtee',coins,bricks, temples,Budh math etc.) are found at many places of this district, showing that there was a developed & organised society long long ago. Ancient history of the district is related with the Ramayan times when 'Koshal Naresh' lord Ram appointed his elder son 'Kush' , the king of Kushawati- which is todays Kushinagar.

          Before Mahabharat times,this area was related with Chakravorty Samrat 'Mahasudtsan' & his kingdom 'kushinagar' was well developed & prosperous.Nearby to his rajya border was the thick area woods 'Maha-van'. This area was under control of Maurya rulers,Gupta rulers & Bhar rulers , and then under control of Gharwal ruler 'Govind Chandra' from year -1114 to year- 1154. This area was under control of Avadh rulers or of Bihar Muslim rulers during Medieval times,is not very clear.

          There was little control of oldest Delhi rulers - Sultan , Nizam or Khilji's on this region. There is no description of this area in east war/attack/invasion scripts by muslim historians meaningby muslim invaders would have seldom visited thick wood area of this region. Many places of this district played an important role in the modern history of this district.Important ones are- Paina, Baikuntpur, Berhaj, Lar, Rudrapur, Hata, Kasia, Gauribazar, Kaptanganj, Udhopur, Tamkuhi, Basantpur Dhoosi etc.

          Gandhiji addressed Deoria & Padrauna public meetings in 1920.Baba Raghav Das had started movement in april' 1930 regarding 'NamakMovement'. In 1931,there were wide movement against government & landlords in this district. Many more people joined Congress as volunteers & marched several places of the district.Sh.Purushottam Das Tondon in 1931 & Rafi Ahmad Kidwai in 1935 visited different places of this district. During Quit India Movement , as much as 580 people were sent behind the bar for different duration. Deoria District came into existence at March 16' 1946 from Gorakhpur district.

           The name DEORIA is derived from 'Devaranya' or probably 'Devpuria' as believed. According to official gazzettes,the district name 'deoria' is taken by its headquarter name 'Deoria' and the term deoria generally means a place where there are temples. Deoria name developed by a fossil(broken) Shiva Temple by the side of 'kurna river' in its northside. Kushinagar (Padrauna) district came into existence in 1994 ' MAY by separating north-east portion of Deoria district.

Nagwa Khas

       Nagwa Khas




Village  Nagwa Khas
Block Rudrapur
District Deoria
State Uttar Pradesh
Country India
Continent Asia
Time Zone IST ( UTC + 05:30)
Currency Indian Rupee ( INR )
Dialing Code +91
Date format dd/mm/yyyy
Driving side left
Internet cTLD in
Language Hindi, Urdu
Time difference -4 minutes
Latitude26.3830577
Longitude83.5416645





Nagwa Khas is a village panchayat located in the Deoria district of Uttar-Pradesh state,India. The latitude 26.3830577 and longitude 83.5416645 are the geocoordinate of the Nagwa Khas. Lucknow is the state capital for Nagwa Khas village. It is located around 294.4 kilometer away from Nagwa Khas.. The other nearest state capital from Nagwa Khas is Patna and its distance is 180.0 KM. The other surrouning state capitals are Patna 180.0 KM., Ranchi 381.5 KM., Gangtok 513.9 KM.                                                                                                                    

The official language of Nagwa Khas

The native language of Nagwa Khas is Hindi, Urdu and most of the village people speak Hindi, Urdu. Nagwa Khas people use Hindi, Urdu language for communication.

The nearest railway station in and around Nagwa Khas

The nearest railway station to Nagwa Khas is Baitalpur which is located in and around 27.1 kilometer distance. The following table shows other railway stations and its distance from Mamakudi.
Baitalpur railway station27.1 KM.
Deoria Sadar railway station27.7 KM.
Deori railway station27.7 KM.
Ahalyapur railway station29.7 KM.
Chauri Chaura railway station29.9 KM.

Nearest airport to Nagwa Khas

Nagwa Khas‘s nearest airport is Gorakhpur Airport situated at 41.5 KM distance. Few more airports around Nagwa Khas are as follows.
Gorakhpur Airport41.5 KM.
Azamgarh Airport49.2 KM.
Kushinagar Airport56.4 KM



Nearest town/city to Nagwa Khas

Nagwa Khas‘s nearest town/city/important place is Tanda located at the distance of 6.0 kilometer. Surrounding town/city/TP/CT from Nagwa Khas are as follows.
Tanda6.0 KM.
Rudrapur9.8 KM.
Barhalganj11.9 KM.
Dohrighat12.8 KM.
Amila13.3 KM.



Schools in and around Nagwa Khas

Nagwa Khas nearest schools has been listed as follows.
Kanya Primary School Hata Bazar7.3 KM.
Vashisth Samrak Public School8.0 KM.
Mahadha High School8.0 KM.
Kahla School8.2 KM.
Primary School9.0 KM













देवरिया, उत्तर प्रदेश

देवरिया, उत्तर प्रदेश

देवरिया भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश  का एक जिला है। जिले का मुख्यालय देवरिया है। देवरिया ज़िला गन्‍ने की खेती और चीनी मिलों के लिए प्रस‍िध्‍द है। यहां की फसलों में धान, गेहूँ, जौ, बाजरा, चना, मटर, अरहर, तिल, सरसों इत्यादि प्रमुख हैं। गंडक, तथा घाघरा इस जिले से हो कर बहती हैं। गंडक नदी एक पौराणिक नदी है; इसका पौराणिक नाम हिरण्यावती है। इन नदियों का यहॉ की सिंचाई में महत्वपूर्ण योगदान है। सिंचाई के अन्य साधनों में नहरें एवं नलकूप प्रमुख हैं।

सांस्कृतिक पहलू :- 

यहॉ बोली जाने वाली बोली भोजपुरी है। जो यहॉ की एक लोकप्रिय बोली है। यहॉ की संस्कृति एवं लोक कला में भोजपुरी की छाप स्पष्ट रूप से दिखती है। यहॉ गाए जाने वाले लोक गीतों में कजरी, सोहर, फगुआ या फाग़ महत्वपूर्ण हैं।
देवरिया से मात्र 27 किमी दूर कुशीनगर में महात्‍मा बुघ्‍द की समाधि स्थित है। यहीं पर भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ। वर्तमान मे यह कुशीनगर जिले मे स्थित है। देवरिया शहर बेहतर रेल एवं सड़क यातायात से जुडा़ हुआ है। इस शहर को ब्रॉड गे़ज की रेल लाइन देश के अन्य शहरों से जोड़ती है। देवरिया डाक मन्डल देवरिया तथा पडरौना जिलो की डाक व्यवस्था देखती है।
इस जनपद की बोली भोजपुरी   है। देवरिया जनपद में मुख्य रूप से हिन्दी बोली जाती है। देवरिया जनपद की कुल जनसंख्या की लगभग ९९ प्रतिशत जनता हिन्दी, लगभग ०.५ प्रतिशत जनता उर्दू और ०.५ प्रतिशत जनता के बातचीत का माध्यम अन्य भाषाएँ हैं। बोली की बात करें तो ग्रामीण जनता के साथ-साथ अधिकांश शहरी जनता भी प्रेम की बोली भोजपुरी बोलती है। कुल जनसंख्या की दृष्टि से इस जनपद में लगभग ९५ प्रतिशत हिन्दू, लगभग ५ प्रतिशत मुस्लिम और अन्य धर्म को मानने वाले हैं

नदियाँ :-

घाघरा, राप्ती और छोटी गंडक (नदियाँ) देवरिया जनपद की मुख्य नदियाँ हैं।

प्रमुख कस्बे  :-

देवरिया जनपद के जाने-माने शहरों में देवरिया, (बरियारपुर ) (खजुरिया) (महुआपाटन) नोनापार बैतालपुर, गौरीबाजार, रामपुर कारखाना, पाण्डेय चक,रामपुर लाला (बलियवा), पथरदेवा, तरकुलवा, रुद्रपुर, बरहज भलुअनी, भाटपाररानी, बनकटा, सलेमपुर, लार, भागलपुर, भटनी, महेन, घांटी, जगरनाथ छपरा, सरयां आदि हैं। 


 

योगी आदित्यनाथ

योगी आदित्यनाथ

योगीजी का जन्म देवाधिदेव भगवान् महादेव की उपत्यका में स्थित देव-भूमि उत्तराखण्ड में 5 जून सन् 1972 को हुआ। शिव अंश की उपस्थिति ने छात्ररूपी योगी जी को शिक्षा के साथ-साथ सनातन हिन्दू धर्म की विकृतियों एवं उस पर हो रहे प्रहार से व्यथित कर दिया। प्रारब्ध की प्राप्ति से प्रेरित होकर आपने 22 वर्ष की अवस्था में सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया। आपने विज्ञान वर्ग से स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की तथा छात्र जीवन में विभिन्न राष्ट्रवादी आन्दोलनों से जुड़े रहे।
अपने पूज्य गुरुदेव के आदेश एवं गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की जनता की मांग पर आपने वर्ष 1998 में लोकसभा चुनाव लड़ा और मात्र 26 वर्ष की आयु में भारतीय संसद के सबसे युवा सांसद बने। जनता के बीच दैनिक उपस्थिति, संसदीय क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले लगभग 1500 ग्रामसभाओं में प्रतिवर्ष भ्रमण तथा हिन्दुत्व और विकास के कार्यक्रमों के कारण गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की जनता ने आपको वर्ष 1999, 2004 और 2009 के चुनाव में निरन्तर बढ़ते हुए मतों के अन्तर से विजयी बनाकर चार बार लोकसभा का सदस्य बनाया।

संसद में सक्रिय उपस्थिति एवं संसदीय कार्य में रुचि लेने के कारण आपको केन्द्र सरकार ने खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग और वितरण मंत्रालय, चीनी और खाद्य तेल वितरण, ग्रामीण विकास मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी, सड़क परिवहन, पोत, नागरिक विमानन, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालयों के स्थायी समिति के सदस्य तथा गृह मंत्रालय की सलाहकार समिति, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ विश्वविद्यालय की समितियों में सदस्य के रूप में समय-समय पर नामित किया।
‘जाति-पाँति पूछे नहिं कोई-हरि को भजै सो हरि का होई’ गोरक्षपीठ का मंत्र रहा है। गोरक्षनाथ ने भारत की जातिवादी-रूढ़िवादिता के विरुद्ध जो उद्घोष किया, उसे इस पीठ ने अनवरत जारी रखा। गोरक्षपीठाधीश्वर परमपूज्य महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज के पद-चिह्नों पर चलते हुए पूज्य योगी आदित्यनाथ जी महाराज ने भी हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों, जातिवाद, क्षेत्रवाद, नारी-पुरुष, अमीर-गरीब आदि विषमताओं, भेदभाव एवं छुआछूत पर कठोर प्रहार करते हुए, इसके विरुद्ध अनवरत अभियान जारी रखा है। गाँव-गाँव में सहभोज के माध्यम से ‘एक साथ बैठें-एक साथ खाएँं’ मंत्र का उन्होंने उद्घोष किया।

महंत अवैद्यनाथ

महंत अवैद्यनाथ का जन्म 28 मई 1921 को महंत अवेद्यनाथ जी का जन्म ग्राम काण्डी, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड में श्री राय सिंह बिष्ट के घर हुआ था। आपके बचपन का नाम श्री कृपाल सिंह बिष्ट था और कालांतर में श्री अवैद्यनाथ बनकर भारत के राजनेता तथा गुरु गोरखनाथ मन्दिर के पीठाधीश्वर थे के रूप में प्रसिद्द हुए। श्री अवैद्यनाथ जी ने हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक साधना के साथ "सामाजिक हिन्दू" साधना को भी आगे बढाया और सामाजिक जनजागरण को अधिक महत्वपूर्ण मानकर हिन्दू धर्म के सोशल इंजीनियरिग पर बल दिया | श्री योगी आदित्यनाथ जी के हिन्दू युवा वाहिनी जैसे युवा संगठन की प्रेरणा भी कहीं न कहीं इसी सोसल इंजीनियरिग की प्रेरणा रही थी |
हिमालय और कैलाश मानसरोवर की यात्रा और साधना से शैव धर्म से गहरे प्रभावित श्री महंथ जी पहली बार १९४० में अपनी बंगाल यात्रा के दौरान मेंमन सिंह (तत्कालीन बंगाल) में श्री निवृति नाथ जी के माध्यम से श्री दिग्विजय नाथ जी से मिले | ८ फ़रवरी १९४२ को आप गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी बन गए | और इस तरह मात्र २३ साल की अवस्था में श्री कृपाल सिंह बिष्ट से अवैद्यनाथ बनकर विश्वमंच पर एक दैदीव्य्मान अक्षय प्रकाश पुंज के रूप में सदैव के लिए अमर हो गये 
राजनैतिक जीवन
दक्षिण भारत के रामनाथपुरम और मीनाक्षीपुरम में अनुसूचित जाति के लोगों के सामूहिक धर्मातरण की घटना से खासे आहत होते हुए महाराज जी ने राजनीति में पदार्पण किया। इस घटना का विस्तार उत्तर भारत में न हो, इसके लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गए और राजनीति में रहकर मतान्तरण का ध्रुवीकरण करने के कुटिल प्रयासों को असफल किया |
आपने 1962, 1967, 1974 व 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में मानीराम सीट का प्रतिनिधित्व किया और 1970, 1989, 1991 और 1996 में गोरखपुर से लोकसभा सदस्य रहे। ३४ वर्षों तक हिन्दू महासभा और भारतीय जनता पार्टी से जेड़े रहकर हिंदुत्व को भारतीय राजनीति में गति देने वाले और सामाजिक हितों की रक्षा करने वाले श्री अवैद्यनाथ जी ने स्वयं को अवसरवाद और पदभार से स्वयं को दूर रखा और इस तरह उन्होंने राजयोग में भी हठयोग का प्रयोग बखूबी किया | कितने पद स्वयं महाराज जी के चरणों में आकर स्वयं सुशोभित होते थे और आशीष लेते थे |
महंत अवेद्यनाथ ने गोरखपुर के वर्तमान सांसद योगी आदित्यनाथ को गोरक्षपीठ का न सिर्फ उत्तराधिकारी बनाया बल्कि उन्होंने योगी आदित्यनाथ को 1998 में सबसे कम उम्र का सांसद बनने का गौरव प्रदान किया। बाद में योगी आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी का गठन किया जो हिन्दू युवाओं को धार्मिक बनाने के लिए प्रेरणा देती है।[1]
महाराजगंज के चौक बाज़ार स्थित गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ महाविद्यालय इन्ही के नाम पर रखा गया हैं।
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